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एक्यूट लिम्फोब्लास्टिक ल्यूकेमिया (एएलएल)

 एक्यूट लिम्फोब्लास्टिक ल्यूकेमिया क्या है?

एक्यूट लिम्फोब्लास्टिक ल्यूकेमिया (एएलएल) खून और बोन मैरो में होने वाला एक कैंसर है। यह बचपन में होने वाला सबसे सामान्य प्रकार का कैंसर है।

अमेरिका में हर साल 20 वर्ष से कम उम्र के लगभग 3,000 बच्चों और किशोरों में एएलएल रोग की पहचान की जाती है।

एएलएल अक्सर 2 से 5 वर्ष की आयु के बच्चों में होता है। यह बड़े बच्चों और किशोरों में भी हो सकता है। यह लड़कियों की बजाय लड़कों को थोड़ा ज्यादा प्रभावित करता है।

शिशुओं में एएलएल दुर्लभ है। अमेरिका में हर साल 1 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में एएलएल के लगभग 90 मामलों की पहचान की जाती है।

एएलएल के लिए सबसे सामान्य इलाज कीमोथेरेपी है। एएलएल के इलाज में बहुत प्रगति हुई है। बच्चों में एएलएल के लिए समग्र इलाज दर लगभग 90% है।

एक्यूट लिम्फोब्लास्टिक ल्यूकेमिया किन कारणों से होता है?

खून के कैंसर (ल्यूकेमिया) में, कैंसर की कोशिकाएँ बोन मैरो में तेजी से बढ़ती हैं। ये कैंसर कोशिकाएँ अपरिपक्व सफेद रक्त कोशिकाएँ होती हैं जिन्हें ब्लास्ट कहा जाता है। जब ऐसा होता है, तो स्वस्थ रक्त कोशिकाएँ — सफेद रक्त कोशिकाएँ, लाल रक्त कोशिकाएँ और प्लेटलेट्स — अपना काम ठीक से नहीं कर पाती हैं।

एएलएल, सफेद रक्त कोशिकाओं को प्रभावित करता है, जिन्हें लिंफोसाइट कहा जाता है। ये कोशिकाएँ संक्रमण से लड़ती हैं और शरीर को बीमारी से बचाने में मदद करती हैं।

लिंफोसाइट दो प्रकार के होते हैं: बी-लिंफोसाइट और टी-लिंफोसाइट। एएलएल दोनों में से किसी भी लिंफोसाइट से उत्पन्न हो सकता है, इसलिए एएलएल के मामले या तो बी-सेल या फिर टी सेल एएलएल के रूप में जाने जाते हैं। बी-सेल एएलएल सबसे आम कैंसर है।

एएलएल के अधिकांश मामलों का कोई ज्ञात कारण नहीं होता है।

कुछ वंशानुगत सिंड्रोम एएलएल के बढ़े हुए जोखिम से जुड़े होते हैं।

खून बनाने की प्रक्रिया और उसमें ब्लास्ट कोशिकाएँ उत्पन्न कैसे होती हैं, यह रेखा-चित्र में दिखाया गया है। रेखा-चित्र ब्लड स्टेम सेल से शुरू होता है। बाईं ओर, यह माइलॉयड स्टेम सेल में विभाजित होती है, जो प्लेटलेट्स, लाल रक्त कोशिकाओं, माइलोब्लास्ट, और मोनोब्लास्ट में विभाजित हो जाती है। माइलोब्लास्ट सफेद रक्त कोशिकाओं में बदल जाता है (जिसे ग्रैनुलोसाइट्स भी कहा जाता है) और मोनोब्लास्ट, मोनोसाइट में बदल जाता है। ब्लड स्टेम सेल की दाईं शाखा लिम्फॉइड स्टेम सेल में जाती है, जो लिम्फोब्लास्ट (जो सफेद रक्त कोशिकाओं में बदलती है) और ब्लास्ट कोशिकाओं में बदल जाती है।

एएलएल, सफेद रक्त कोशिकाओं को प्रभावित करता है, जिन्हें लिंफोसाइट कहा जाता है। एएलएल से पीड़ित रोगियों के बोन मैरो में अत्यधिक मात्रा में अपरिपक्व सफेद रक्त कोशिकाएँ (ब्लास्ट) होती हैं। ये कोशिकाएँ सामान्य रूप से काम नहीं करती हैं। ये सामान्य सफेद रक्त कोशिकाओं, लाल रक्त कोशिकाओं और प्लेटलेट्स को हटा कर उनका स्थान लेती हैं।

एक्यूट लिम्फोब्लास्टिक ल्यूकेमिया के संकेत और लक्षण क्या हैं?

एक्यूट ल्यूकेमिया (खून का कैंसर) से तात्पर्य है कि लक्षण तेजी से बिगड़ते हैं।

इससे बच्चे बहुत बीमार पड़ सकते हैं और उन्हें तुरंत चिकित्सा देखभाल की आवश्यकता पड़ सकती है।

एएलएल के निम्नलिखित संकेत और लक्षण हो सकते हैं:

  • थकान
  • हड्डियों या जोड़ों में दर्द होना
  • बुखार
  • बार-बार संक्रमण होना
  • आसानी से घाव होना या रक्तस्राव होना जिसे रोकना मुश्किल होता है
  • छोटे, सपाट, गहरे लाल रंग के त्वचा के धब्बे (लाल चिकत्ता)
  • गर्दन, बगल, पेट या जाँघों (ऊसन्धि) के जोड़ में गाँठ होना
  • पसलियों के नीचे दर्द या भारीपन
  • पीलापन
  • भूख न लगना
  • साँस की तकलीफ होना
  • बढ़ा हुआ यकृत (जिगर)
  • बढ़ा हुआ प्लीहा
शरीरकोष विज्ञान संबंधी दो स्लाइडों का पास-पास में चित्रण जो सामान्य रक्त कोशिकाओं और हाल ही में एएलएल रोग की पहचान की गई रक्त कोशिकाओं के बीच का अंतर दर्शाता है।

खून का कैंसर (ल्यूकेमिया) से पीड़ित बच्चों के खून में आमतौर पर सफेद रक्त कोशिकाओं की संख्या बहुत अधिक होती है।

एक्यूट लिम्फोब्लास्टिक ल्यूकेमिया रोग की पहचान कैसे की जाती है?

कई बार शारीरिक जांच करके, चिकित्सकीय इतिहास जान कर और खून की जाँच के परिणामों को देखने के बाद चिकित्सकों को ल्यूकेमिया (खून का कैंसर) का संदेह हो सकता है।

ल्यूकेमिया (खून का कैंसर) रोग की पहचान की पुष्टि करने के लिए बोन मैरो जाँच की आवश्यकता होती है।

यदि ल्यूकेमिया (खून का कैंसर) पाया जाता है, तो यह पता लगाने के लिए कि क्या एएलएल शरीर के अन्य भागों में है और एएलएल के उपप्रकार के बारे में जानकारी एकत्र करने के लिए अतिरिक्त जाँचें की जाएंगी।

कैंसर रोग की पहचान होने पर, कैंसर के सही उपप्रकार का पता लगाने के लिए बोन मैरो पर और अधिक जाँचें की जाएंगी।

कैंसर रोग की पहचान होने के बाद की जाँच

देखभाल टीम यह पता लगाने के लिए जाँच करेगी कि यह शरीर के अन्य भागों में है या नहीं।

लंबर पंक्चर

एक लंबर पंक्चर दिखाएगा कि क्या खून का कैंसर केंद्रीय तंत्रिका तंत्र में फैला है या नहीं। इस जाँच को LP या स्पाइनल टैप (रीढ़ की हड्डी के अंदर से पानी निकालना) भी कहा जाता है।

रोगियों को उसी समय कीमोथेरेपी दी जा सकती है जब यह प्रक्रिया की जाती है। इसे रोग निरोधक इंट्राथेकल कीमोथेरेपी कहा जाता है। यह एएलएल को रीढ़ की हड्डी में पानी में फ़ैलने से रोकने के लिए दिया जाता है।

छाती का एक्स-रे

छाती का एक्स-रे यह देखने के लिए किया जाएगा कि क्या खून के कैंसर (ल्यूकेमिया) वाली कोशिकाओं से छाती के बीच में कोई पिंड बना है।

अन्य इमेजिंग जाँच और लेबोरेट्री जाँच

यदि रोगियों में कुछ संकेत और लक्षण हों तो अन्य इमेजिंग अध्ययन और लेबोरेट्री जाँच की जा सकती हैं।

प्रसव आयु वाली महिला रोगियों की गर्भावस्था जाँच हो सकती है।

चिकित्सक को वीर्यकोष की भागीदारी का संदेह होने पर पुरुष रोगियों की अल्ट्रासाउंड द्वारा जाँच की जा सकती है। एएलएल में यह दुर्लभ है। यह 1-2% पुरुषों में होता है।

प्रजनन संबंधी परामर्श

विशेष रूप से किशोरों में पुरुषों और महिलाओं के लिए प्रजनन संबंधी परामर्श और/या संरक्षण विकल्प प्रस्तुत किए जाने चाहिए।

एक्यूट लिम्फोब्लास्टिक ल्यूकेमिया का इलाज

कीमोथेरेपी बचपन में होने वाले एएलएल का एक प्रमुख इलाज है। इलाज में दवाइयों का संयोजन शामिल है। इसे पूरा होने में 2 से 3 वर्ष का समय लगता है।

इलाज आमतौर पर एक आउट पेशेंट के आधार पर किया जाता है। लेकिन कई बार ऐसा भी हो सकता है कि रोगी को अस्पताल में रहने की ज़रूरत पड़े।

अमेरिका में कई कैंसर केंद्र और अस्पताल एएलएल का इलाज करते हैं। विशिष्ट दवाएँ, खुराक और डिलीवरी का शेड्यूल कुछ हद तक भिन्न हो सकता है। लेकिन इलाज के सिद्धांत समान हैं।

इलाज योजना रोगी की नैदानिक जांच के परिणामों पर निर्भर करेगी।

सेंट्रल वेनस एक्सेस डिवाइस लगवाने के लिए रोगियों को सर्जिकल प्रक्रिया से गुज़रना होगा। यह डिवाइस सुई की आवश्यकता को कम करता है। डिवाइस के माध्यम से लेबोरेट्री जाँचों के लिए खून लिया जा सकता है और नसों में (आईवी) दवाएँ, द्रव्य, रक्त उत्पाद और पोषण प्रदान किए जा सकते हैं। इलाज पूरा हो जाने के बाद उसे निकाल दिया जाएगा।

इलाज के दौरान रोगियों को स्कूल से अवकाश लेना पड़ सकता है। लेकिन इलाज केंद्र, स्कूल, माता-पिता और छात्र एक साथ काम कर सकते हैं ताकि छात्र जितना संभव हो अध्ययन कर सके।

जोखिम समूह

चिकित्सक व्यक्तिगत रोगियों के जोखिम समूह के आधार पर उनके लिए उपयुक्त इलाज निर्धारित करने में अत्यधिक सक्षम बन रहे हैं।

जोखिम समूह इस संभावना को संदर्भित करता है कि रोगी के कैंसर पर या तो इलाज (जिस पर प्रभाव न पड़े) का प्रभाव नहीं पड़ेगा, या यह इलाज (रोग का वापस आना) की प्रारंभिक प्रतिक्रिया के बाद वापस आ जाएगा। वापस आ चुके या प्रभाव नहीं पड़ने वाले एएलएल के लिए इलाज के विकल्प हैं।

इलाज केंद्र के आधार पर जोखिम समूहों के अलग-अलग नाम होते हैं। सामान्य तौर पर, इन जोखिम समूहों को निम्न, मानक, उच्च और बहुत उच्च कहा जाता है।

कीमोथेरेपी की विधि और दवाई के प्रकार बच्चे के जोखिम समूह पर निर्भर करते हैं। जैसे कि, उच्च-जोखिम वाले खून का कैंसर (ल्यूकेमिया) से पीड़ित बच्चों और को किशोरों को कम जोखिम वाले एएलएल से पीड़ित बच्चों की तुलना में आमतौर पर अधिक कैंसर रोधी दवाएँ और/या अधिक खुराकें प्राप्त होंगी।

कुछ स्थितियों में, इलाज में लक्षित इलाज, प्रतिरक्षा बढ़ाने का उपचार (इम्यूनोथेरेपी) और हेमेटोपोएटिक कोशिका प्रत्यारोपण (जिसे बोन मैरो ट्रांसप्लांट या स्टेम सेल ट्रांसप्लांट के रूप में भी जाना जाता है) भी शामिल हो सकता है।

जोखिम समूहों का निर्धारण निम्नलिखित द्वारा किया जाता है:

  • कैंसर बी-लिम्फोसाइट्स में शुरू हुआ है या टी-लिम्फोसाइट्स में — बी-सेल एएलएल को टी सेल एएलएल की तुलना में कम जोखिम वाला माना जाएगा।
  • आयु — बी-सेल एएलएल से पीड़ित 1 से 9 साल तक की उम्र के बच्चों को आमतौर पर कम या सामान्य जोखिम वाला रोगी माना जाता है। 1 साल से कम उम्र के बच्चों और 10 साल या उससे अधिक उम्र के बच्चों को उच्च-जोखिम वाला रोगी माना जाता है। (इलाज केंद्रों के बीच यह आयु कट-ऑफ़ भिन्न हो सकता है।)
  • रोग की पहचान के समय सफेद रक्त कोशिकाओं की संख्या — 50,000 से कम संख्या वाले बच्चों को कम जोखिम वाला रोगी माना जाता है।
  • क्रोमोसोम (गुणसूत्र) या जीन्स (वंशाणु) में कुछ परिवर्तन
  • गुणसूत्र की संख्या — हाइपरडिप्लोइड मामलों (50 से अधिक गुणसूत्र) को कम जोखिम का माना जाता है जबकि हाइपोडिप्लोइड मामलों (44 से कम गुणसूत्र वाले बच्चे) को उच्च-जोखिम का माना जाता है।
  • इलाज की प्रतिक्रिया — वे मामले जिनमें इलाज के पहले दो हफ़्तों में ही खून का कैंसर (ल्यूकेमिया) कोशिकाओं में प्रभावशाली रूप से गिरावट आती है, उन्हें कम जोखिम का माना जाता है।
  • न्यूनतम अवशिष्ट बीमारी (एमआरडी) — बहुत से बाल-चिकित्सा कैंसर केंद्र न्यूनतम अवशिष्ट बीमारी (एमआरडी) को मापने के लिए अत्यधिक संवेदी जाँचों का उपयोग करते हैं।
  • भले ही रोग की पहचान के समय रीढ़ की हड्डी में पानी (सीएसएफ) में खून के कैंसर (ल्यूकेमिया) की कोशिकाएँ मिली हों — यदि कोशिकाएँ सीएसएफ में फैल गई हैं तो ऐसी स्थिति में अधिक इंट्राथेकल थेरेपी के साथ इलाज किया जाता है।

इलाज के तीन चरण

एएलएल के इलाज के 3 चरण हैं और इसे पूरा करने में लगभग 2 से 3 साल का समय लगता है।

अन्य इलाज

कुछ स्थितियों में, चिकित्सक इलाज के अतिरिक्त विकल्पों की अनुशंसा कर सकते हैं।

लक्षित इलाज

लक्षित इलाज में उन दवाओं का उपयोग होता है जो कैंसर कोशिकाओं की तलाश करती हैं और आसपास की सामान्य कोशिकाओं को हानि पहुँचाए बिना उन पर हमला करती हैं। इस प्रकार की थेरेपी केवल तभी संभव होती है जब कैंसर में पहचान योग्य जीन (वंशाणु) मौजूद होते हैं और जो उपलब्ध लक्षित दवाओं पर अनुकूल प्रतिक्रिया दिखाते हैं।

लक्षित इलाज की दवाओं में इमैटिनिब या डेसाटिनिब को फिलाडेल्फिया गुणसूत्र-पॉज़िटिव एएलएल और फिलाडेल्फिया-जैसे एएलएल के इलाज में प्रभावी दिखाया गया है।

रुक्सोलिटिनिब का उपयोग एक प्रकार के एएलएल के इलाज के लिए किया जा सकता है जिसे फिलाडेल्फिया-जैसा एएलएल कहा जाता है।

प्रतिरक्षा बढ़ाने का उपचार (इम्यूनोथेरेपी)

प्रतिरक्षा बढ़ाने का उपचार (इम्यूनोथेरेपी) कैंसर इलाज का वह प्रकार है जिसमें कैंसर से लड़ने के लिए प्रतिरक्षा प्रणाली का उपयोग किया जाता है। सामान्य तौर पर, प्रतिरक्षा बढ़ाने का उपचार (इम्यूनोथेरेपी) कैंसर कोशिकाओं को खोजने में प्रतिरक्षा प्रणाली की मदद करके काम करते हैं। तब यह कैंसर कोशिकाओं पर हमला कर सकता है और/या कैंसर के प्रति प्रतिक्रिया करने के लिए प्रतिरक्षा प्रणाली की क्षमता को बढ़ा सकता है।

प्रतिरक्षा बढ़ाने का उपचार (इम्यूनोथेरेपी) में मोनोक्लोनल एंटीबॉडी दवा जैसे कि ब्लिनेटुमोमैब, इनोटुज़ुमैब ओज़ोगैमिकिन और रिटुक्सीमैब शामिल हो सकती है। किमेरिक एंटीजन रिसेप्टर (CAR) टी सेल, जैसे कि टिसजेनलेक्ल्यूसेल, भी एक संभावित इलाज हो सकता है।

हेमेटोपोएटिक कोशिका प्रत्यारोपण (जिसे बोन मैरो ट्रांसप्लांट या स्टेम सेल ट्रांसप्लांट के रूप में भी जाना जाता है)

हेमेटोपोएटिक कोशिका प्रत्यारोपण (जिसे बोन मैरो ट्रांसप्लांट या स्टेम सेल ट्रांसप्लांट के रूप में भी जाना जाता है) की सलाह उन बच्चों के लिए दी जा सकती है जिसमें खून के कैंसर (ल्यूकेमिया) के वापस आने की अधिक संभावना है या जिनके एएलएल पर इलाज का असर नहीं हो रहा है। रोगियों को चिकित्सा के दृष्टिकोण से सक्षम होना चाहिए और उनके पास एक उपयुक्त डोनर होना चाहिए।

चिकित्सक यह तय करने के लिए कि रोगी को प्रत्यारोपण की आवश्यकता है या नहीं, कभी-कभी यह देखते हैं कि इंडक्शन कीमोथेरेपी ने रोगी पर कितनी अच्छी तरह काम किया है।

रेडिएशन

एएलएल इलाज में रेडिएशन का उपयोग शायद ही कभी किया जाता है। यह उन मामलों में दिया जा सकता है जहाँ एएलएल मस्तिष्क, रीढ़ के अंदर की नस, या वीर्यकोष में फैल गया है। 2019 के एक अध्ययन से पता चला है कि एएलएल के लिए केंद्रीय तंत्रिका तंत्र पर रेडिएशन को छोड़ा जा सकता है

रोगियों को हिमेटोपोएटिक कोशिका प्रत्यारोपण (आमतौर पर बोन मैरो ट्रांसप्लांट या स्टेम सेल ट्रांसप्लांट के रूप में भी जाना जाता है) करवाने को तैयार करने के लिए रेडिएशन भी दिया जा सकता है।

एक्यूट लिम्फोब्लास्टिक ल्यूकेमिया के इलाज के क्या दुष्प्रभाव हैं?

दुष्प्रभावों का पहले से अनुमान लगाना कठिन होता है। वे दवाई पर और किसी व्यक्ति के इस पर प्रतिक्रिया के तरीके पर निर्भर करते हैं। एक ही दवाई के लिए अलग-अलग लोगों की अलग-अलग प्रतिक्रियाएँ हो सकती हैं।

एएलएल इलाज के किसी भी चरण के दौरान दुष्प्रभाव हो सकते हैं। इलाज के पहले सप्ताह (इंडक्शन चरण) सबसे मुश्किल होते हैं और गंभीर दुष्प्रभाव उत्पन्न होने की सबसे अधिक संभावना होती है। इन दुष्प्रभावों के लिए इलाज मौजूद हैं।

दुष्प्रभावों में निम्नलिखित शामिल हो सकते हैं:

एक्यूट लिम्फोब्लास्टिक ल्यूकेमिया का पूर्वानुमान (प्रोग्नोसिस) क्या है?

एएलएल से पीड़ित लगभग 98% बच्चों में इलाज शुरू हो जाने के बाद कुछ ही सप्ताह में कैंसर-मुक्त होने की प्रक्रिया में सुधार आ जाता है।

एएलएल से पीड़ित 90% से अधिक बच्चों को कैंसर-मुक्त किया जा सकता है। रोगियों को लगभग 5 साल तक सुधार की स्थिति में रहने के बाद कैंसर-मुक्त माना जाता है।

कम जोखिम वाले समूह में एएलएल रोगियों की जीवित रहने की दर 95% से अधिक हो सकती है।

अगर रोगी किसी ऐसे प्रकार के एएलएल से ग्रस्त हैं जो इलाज पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दिखाता है (जिस पर प्रभाव न पड़े) या जो इलाज के बाद वापस आ जाता है (पुनरावर्तन), तो चिकित्सीय टीम इलाज विकल्पों पर चर्चा करेगी।

एक्यूट लिम्फोब्लास्टिक ल्यूकेमिया के इलाज के बाद देरी से दिखाई देने वाले प्रभाव

कुछ एएलएल रोगियों में देर से दिखाई देने वाले प्रभाव हो सकते हैं। देरी से दिखाई देने वाला प्रभाव एक स्वास्थ्य-संबंधी समस्या है जो इलाज समाप्त होने के कई महीनों या वर्षों बाद दिखाई देती है।

कैंसर के इलाज के बाद कैंसर रोगियों को उनके उपचार केंद्र देखभाल टीम और/या समुदाय में प्राथमिक देखभाल चिकित्सक के निर्देशों का पालन करना चाहिए। देरी से दिखाई देने वाले प्रभावों का अक्सर इलाज किया जा सकता है या कुछ स्थितियों में उन्हें रोका जा सकता है।

अलग-अलग इलाजों के अलग-अलग देरी से दिखाई देने वाले प्रभाव हो सकते हैं। सभी रोगियों में देरी से दिखाई देने वाले प्रभाव नहीं होंगे। जिन रोगियों ने समान इलाज कराया था, वे अलग-अलग देरी से दिखाई देने वाले प्रभाव अनुभव कर सकते हैं।

एक्यूट लिम्फोब्लास्टिक ल्यूकेमिया शोध का वर्तमान केंद्र-बिंदु

वर्तमान जाँच-विज्ञान उन बच्चों के लिए अधिक प्रभावी इलाज विकसित करने पर केंद्रित है जिनके कैंसर पर मूल चिकित्सा का कोई असर नहीं होता है।

शोधकर्ता उन इलाजों को विकसित करने पर भी ध्यान केंद्रित कर रहे हैं जो थेरेपी के दौरान बहुत अधिक दुष्प्रभाव पैदा नहीं करते हैं और कैंसर से बचे लोगों पर देरी से दिखाई देने वाले प्रभाव बहुत अधिक नहीं दिखाई देते।


समीक्षा की गई: फ़रवरी 2020