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Together, बच्चों को होने वाले कैंसर से पीड़ित किसी भी व्यक्ति - रोगियों और उनके माता-पिता, परिवार के सदस्यों और मित्रों के लिए एक नया सहारा है.
और अधिक जानेंएक्यूट माइलॉयड ल्यूकेमिया (एएमएल) खून और बोन मैरो (हड्डी के अंदर जहां खून बनता है) में होने वाला एक कैंसर है। एएमएल एक्यूट लिम्फोब्लास्टिक ल्यूकेमिया (एएलएल) के बाद बचपन में होने वाला दूसरा सबसे आम कैंसर खून का कैंसर है।
यूएस में प्रतिवर्ष लगभग 500 बच्चे एएमएल से पीड़ित पाए जाते हैं। यह वयस्कों में बहुत आम है।
बचपन में होने वाला एएमएल आमतौर पर जीवन के पहले 2 वर्षों के दौरान और किशोरावस्था वर्षों के दौरान सबसे अधिक पाया जाता है।
एएमएल माइलॉयड स्टेम सेल नामक रक्त कोशिकाओं को प्रभावित करता है। सामान्यतः, बोन मैरो (हड्डी के अंदर जहां खून बनता है) रक्त-उत्पादन करने वाली स्टेम सेल का निर्माण करती है जो या तो माइलॉयड स्टेम सेल या लिम्फॉइड स्टेम सेल बन जाते हैं। माइलॉयड स्टेम सेल निम्नलिखित तीन प्रकार में से एक प्रकार की परिपक्व रक्त कोशिका बन जाती है:
यह छवि दर्शाती है कि एक सामान्य, स्वस्थ बोन मैरो (हड्डी के अंदर जहां खून बनता है) माइक्रोस्कोप के माध्यम से कैसी दिखती है।
यह एक्यूट माइलॉयड ल्यूकेमिया से पीड़ित एक बाल रोगी की बोन मैरो (हड्डी के अंदर जहां खून बनता है) है।
एएमएल के कई उपप्रकार हैं। यह महत्वपूर्ण होता है क्योंकि एएमएल का प्रकार रोग पूर्वानुमान और इलाज का निर्धारण करता है।
एएमएल का उपप्रकार जानने पर चिकित्सक एएमएल मामलों को निम्न-जोखिम या उच्च-जोखिम में वर्गीकृत कर सकते हैं, जिससे उन्हें सबसे अधिक उपयुक्त इलाज का चयन करने में मदद मिलती है। एएमएल का इलाज आमतौर पर कीमोथेरेपी और कभी-कभी बोन मैरो ट्रांसप्लांट होता है। जोखिम श्रेणी पर आधारित इलाज (जोखिम-अनुकूलित चिकित्सा) निर्धारित करने से कैंसर से जीवित रहने की दर में वृद्धि हुई है। अधिक उच्च-जोखिम प्रकार के कैंसर से पीड़ित रोगियों को सर्वाधिक गहन चिकित्सा दी जा सकती है जबकि निम्न-जोखिम मामले वाले रोगियों को निम्न-गहनता वाली चिकित्सा दी जा सकती है जिसके कम दुष्प्रभाव होते हैं। एएमएल उपप्रकार के बारे में अधिक जानकारी के लिए, अपने चिकित्सक से संपर्क करें।
बच्चों में देखे गए एक्यूट माइलॉयड ल्यूकेमिया (एएमएल) और संबंधित ट्यूमर (विश्व स्वास्थ्य संगठन, 2016):
दुबारा होने वाला आनुवंशिक असामान्यताओं के साथ एएमएल
माइलोडिस्प्लेज़िया-संबंधित परिवर्तनों के साथ एएमएल
इलाज-संबंधित माइलॉयड नियोप्लाज़्म
एएमएल, जब तक कि कुछ और निर्दिष्ट न किया जाए
माइलॉयड सार्कोमा
डाउन सिंड्रोम से संबंधित माइलॉयड प्रोलिफेरेशन
खून के कैंसर में, कैंसर कोशिकाएं बोन मैरो (हड्डी के अंदर जहां खून बनता है) में तेजी से बढ़ती हैं। ये कैंसर कोशिकाएं अपरिपक्व सफेद रक्त कोशिकाएं होती हैं जिन्हें ब्लास्ट कहा जाता है। जब ऐसा होता है, तो स्वस्थ रक्त कोशिकाएं - श्वेत रक्त कोशिकाएं, लाल रक्त कोशिकाएं, और प्लेटलेट्स - अपने कार्य सही ढंग से नहीं कर पाती हैं।
एएमएल माइलॉयड स्टेम सेल नामक रक्त कोशिकाओं को प्रभावित करता है। सामान्यतः, बोन मैरो (हड्डी के अंदर जहां खून बनता है) रक्त-उत्पादन करने वाली स्टेम सेल का निर्माण करती है जो या तो माइलॉयड स्टेम सेल या लिम्फॉइड स्टेम सेल बन जाते हैं।
एएमएल माइलॉयड स्टेम सेल नामक रक्त कोशिकाओं को प्रभावित करता है। सामान्यतः, बोन मैरो (हड्डी के अंदर जहां खून बनता है) रक्त-उत्पादन करने वाली स्टेम सेल का निर्माण करती है जो या तो माइलॉयड स्टेम सेल या लिम्फॉइड स्टेम सेल बन जाते हैं। माइलॉयड स्टेम सेल निम्नलिखित तीन प्रकार में से एक प्रकार की परिपक्व रक्त कोशिका बन जाती है:
बचपन में होने वाला एएमएल के जोखिम कारकों में निम्नलिखित शामिल हैं:
कुछ वंशानुगत विकार होना, जैसे:
एएमएल में, निम्नलिखित संकेत और लक्षण हो सकते हैं:
खून का कैंसर (ल्यूकेमिया) रोग की पहचान के लिए आमतौर पर बोन मैरो (हड्डी के अंदर जहां खून बनता है) जाँच की आवश्यकता होती है। कई बार शारीरिक जाँच करके, चिकित्सकीय इतिहास जान कर और खून की जाँच के परिणामों को देखने के बाद चिकित्सक ल्यूकेमिया (खून का कैंसर) का शक करने लगते हैं। खून के कैंसर (ल्यूकेमिया) से पीड़ित बच्चों के खून में आमतौर पर अपरिपक्व सफेद रक्त कोशिकाओं की संख्या बहुत अधिक होती है।
परीक्षण और इतिहास जाँच के दौरान, चिकित्सक निम्न कार्य करेगा:
चिकित्सक एक खून जाँच कराने को कहेंगे जिसे कंप्लीट ब्लड काउंट कहा जाता है। खून का नमूना लिया जाता है और उसकी जांच की जाती है ताकि निम्न चीजों का पता लगाया जा सके:
खून के कैंसर में, खून में उच्च संख्या में सफेद रक्त कोशिकाएं हो सकती हैं। इन कोशिकाओं में से अधिकतर कोशिकाएं ब्लास्ट हो सकती हैं, कोशिका का वह प्रारंभिक रूप जो आमतौर पर केवल स्वस्थ बच्चों की बोन मैरो (हड्डी के अंदर जहां खून बनता है) में ही पायी जाती हैं।
इसमें शरीर के अंगों और ऊतकों द्वारा खून में बहने वाले कुछ पदार्थों की मात्राओं को मापने के लिए खून की जाँच की जाती है। किसी पदार्थ का असामान्य (सामान्य से अधिक या कम) मात्रा में होना बीमारी होने का संकेत हो सकता है।
कई बार शारीरिक जाँच करके, चिकित्सकीय इतिहास जान कर और खून की जाँच के परिणामों को देखने के बाद चिकित्सक ल्यूकेमिया (खून का कैंसर) का शक करने लगते हैं।
कैंसर का पता लग जाने पर, कैंसर के सही उपप्रकार का पता लगाने के लिए और अधिक जांच की जाएंगी। इन जाँचों में शामिल है:
इम्यूनोफिनोटायपिंग का उपयोग, प्रतिरक्षा प्रणाली की सामान्य कोशिकाओं से कैंसर कोशिकाओं की तुलना करते हुए खून का कैंसर (ल्यूकेमिया) के विशेष प्रकारों की पहचान करने के लिए किया जाता है।
इम्युनोहिस्टोकैमिस्ट्री और फ़्लो साइटोमेट्री लेबोरेट्री में होने वाले जाँच हैं।
साइटोजेनेटिक विश्लेषण में लेबोरेट्री जाँच शामिल होती हैं जिनमें रोगविज्ञानी (पैथालॉजिस्ट) क्रोमोसोम (गुणसूत्र) में हुए कुछ परिवर्तनों की खोज करते हैं।
एक ऐसी ही जाँच है एफ़आईएसएच (फ्लोरेंसेंस इन सीतु ह्यब्रिडिजाशन)। इस जाँच में कोशिकाओं और कैंसर के टुकड़े में जीन्स या गुणसूत्र की जाँच की जाती है। डीएनए के वे खंड जिनमें फ्लोरोसेंट डाई होती है, लेबोरेट्री में बनाए जाते हैं और फिर उन्हें कांच की स्लाइड पर कोशिकाओं या ऊत्तकों में मिलाया जाता है। जब डीएनए के ये खंड स्लाइड पर रखे कुछ जीन्स या गुणसूत्रों के हिस्सों से जुड़ते हैं, तो वे चमक उठते हैं।
चिकित्सक विशिष्ट वंशाणुओं, प्रोटीनों और खून के कैंसर में शामिल अन्य कारकों की पहचान करने के लिए प्रयोगशाला में जांच करवाने की सलाह दे सकते हैं। यह परीक्षण महत्वपूर्ण है क्योंकि कैंसर, कोशिकाओं के जीन्स में दोषों (उत्परिवर्तन) के कारण होता है।
इन दोषों की पहचान करने से खून का कैंसर (ल्यूकेमिया) के विशिष्ट उपप्रकार रोग की पहचान करने में मदद मिलती है। उस जानकारी के आधार पर, चिकित्सक व्यक्तिगत मामले के अनुरूप इलाज विकल्पों का चयन कर सकते हैं। जिन बच्चों का खून का कैंसर अच्छे परिणाम से जुड़े उत्परिवर्तनों को दर्शाता है, उनके लिए कम विषाक्त इलाज निर्धारित किया जा सकता है। दूसरी ओर, चिकित्सक खराब परिणामों के साथ जुड़े उत्परिवर्तनों वाले खून का कैंसर (ल्यूकेमिया) से पीड़ित रोगियों के लिए अधिक गहन इलाज निर्धारित कर सकते हैं। उन उत्परिवर्तनों की पहचान की जा सकती है, जिनके लिए उस विशिष्ट उत्परिवर्तन का लक्षित इलाज उपलब्ध है।
कैंसर फैलने का पता लगाने के लिए कुछ जाँचें इस प्रकार हैं:
यह पता लगाने के लिए कि कैंसर केंद्रीय तंत्रिका तंत्र तक फैला है या नहीं, रीढ़ की हड्डी से रीढ़ की हड्डी के पानी का नमूना लेने के लिए लंबर पंक्चर किया जाता है। इस प्रक्रिया को LP या स्पाइनल टैप (रीढ़ की हड्डी के अंदर से पानी निकालना) भी कहा जाता है।
इस प्रक्रिया में रीढ़ की दो हड्डियों के बीच में और रीढ़ के अंदर की नस के आसपास के पानी में एक सुई लगाई जाती है। उस पानी का नमूना निकाल लिया जाता है। उसे माइक्रोस्कोप के नीचे रखकर, मस्तिष्क और रीढ़ के अंदर की नस तक खून का कैंसर (ल्यूकेमिया) कोशिकाओं के फैलने के संकेतों की जाँच की जाती है। हमारे शरीर लगातार रीढ़ में द्रव का निर्माण करते रहते हैं, इसलिए शरीर लंबर पंक्चर द्वारा लिए गए थोड़े से पानी के स्थान को तुरंत दुबारा भर देता है।
एक्स-रे एक प्रकार की ऊर्जा किरण है जो शरीर से गुजरकर फ़िल्म पर जा सकती है, जो शरीर के अंदर के भागों की कंप्यूटर स्क्रीन पर या विशेष फ़िल्म पर तस्वीर बनाती है। छाती का एक्स-रे यह देखने के लिए किया जाता है कि क्या खून का कैंसर (ल्यूकेमिया) कोशिकाओं से छाती के बीच में कोई गाँठ/पिंड बनी है।
इलाज, एएमएल के प्रकार पर निर्भर करता है। एएमएल के तीन प्रकार — एक्यूट प्रोमाइलोसाइटिक ल्युकेमिया (एपीएल), डाउन सिंड्रोम से ग्रस्त बच्चों में एएमएल, और एफएलटी3-उत्परिवर्तित एएमएल — का इलाज एएमएल के अन्य प्रकारों की तुलना में अलग तरीके से किया जाता है।
कीमोथेरेपी एक प्राथमिक एएमएल इलाज है। बोन मैरो ट्रांसप्लांट भी एक विकल्प हो सकता है।
चिकित्सक इलाज की सूचना देने के लिए जानकारी एकत्र करते हैं।
रोगी में कीमोथेरेपी, तरल देने और उसके रक्त के नमूने लेने के लिए उसे टनल्ड सेंट्रल लाइन या अन्य सेंट्रल वेनस एक्सेस डिवाइस डालने की प्रक्रिया से गुजरना होगा।
इस चरण का लक्ष्य खून और बोन मैरो (हड्डी के अंदर जहां खून बनता है) में मौजूद खून के कैंसर वाली कोशिकाओं को नष्ट करना और रोगी को कैंसर-मुक्त करना है।
चूंकि एएमएल रोगी संक्रमण के प्रति अति संवेदनशील होते हैं, इसलिए उन्हें जीवाणु नाशक दवाई (एंटीबायोटिक) दवाओं के साथ सहायक इलाज भी दिया जाता है।
इस समय के दौरान, मस्तिष्क और रीढ़ के अंदर की नस में मौजूद खून के कैंसर की कोशिकाओं को नष्ट करने के लिए केंद्रीय तंत्रिका तंत्र (सीएनएस) सैंक्चुअरी थेरेपी भी दी जा सकती है (जिसे सीएनएस प्रोफिलैक्सिस भी कहा जाता है)।
चिकित्सक यह तय करने के लिए कि रोगी को हेमाटोपोईएटिक कोशिका प्रत्यारोपण की आवश्यकता है या नहीं, संभवतः यह देखेंगे की इंडक्शन कीमोथेरेपी ने रोगी पर कितनी अच्छी तरह काम किया है। वास्तव में, यदि रोगी को प्रत्यारोपण की आवश्यकता पड़ती है तो ऐसे मामले में संभावित डोनर की पहचान करने के लिए रोगियों और परिवारों को एचएलए टाइपिंग की प्रक्रिया से गुजरना पड़ सकता है।
बहुत से बाल-चिकित्सा केंद्र न्यूनतम अवशिष्ट रोग (एमआरडी) को मापने के लिए अत्यधिक संवेदी जाँचों का उपयोग करते हैं। सकारात्मक एमआरडी इंगित करता है कि रोगी में रोग के वापस आने का अधिक खतरा है और उसे अधिक गहन थेरेपी की आवश्यकता है।
यह कन्सॉलिडेशन चरण रोगी के कैंसर-मुक्त होने के बाद शुरू होता है। इसका लक्ष्य शेष बची सभी खून का कैंसर (ल्यूकेमिया) कोशिकाओं को नष्ट करना होता है।
इसमें कीमोथेरेपी के 2-4 चक्र शामिल होते हैं।
कुछ रोगियों को इस स्तर पर हेमाटोपोईएटिक कोशिका प्रत्यारोपण दिया जा सकता है। यदि रोगी का प्रत्यारोपण हुआ है, तो उसे कई सप्ताह तक अस्पताल में भर्ती रहना होगा। रोगी स्कूल वापस जा सके उससे पहले उसे ठीक होने में एक वर्ष तक का समय लग सकता है।
रोगी हर 4 महीने में एक बार फॉलो-अप विज़िट के लिए वापस आ सकता है।
इन दौरों में निम्नलिखित शामिल हो सकते हैं:
अनुवर्ती दौरे बदलकर हर 6 महीने में एक बार हो सकते हैं।
अनुवर्ती दौरे बदलकर साल में एक बार हो सकते हैं।
इस इंडक्शन चरण का लक्ष्य खून और बोन मैरो (हड्डी के अंदर जहां खून बनता है) में मौजूद खून के कैंसर वाली कोशिकाओं को नष्ट करना और रोगी को कैंसर-मुक्त करना है। चूंकि एएमएल रोगी संक्रमण के प्रति अति संवेदनशील होते हैं, इसलिए उन्हें जीवाणु नाशक दवाई (एंटीबायोटिक) दवाओं के साथ सहायक इलाज भी दिया जाता है।
इस समय के दौरान, मस्तिष्क और रीढ़ के अंदर की नस में मौजूद खून के कैंसर की कोशिकाओं को नष्ट करने के लिए केंद्रीय तंत्रिका तंत्र (सीएनएस) सैंक्चुअरी थेरेपी भी दी जा सकती है (जिसे सीएनएस प्रोफिलैक्सिस भी कहा जाता है)। दवाओं को इंजेक्शन से मस्तिष्क और रीढ़ के अंदर की नस को कवर करने वाले ऊतक की पतली परतों के बीच तरल से भरे स्थान में डाला जाता है (इंट्राथेकल)।
कैंसर के शुरूआती इलाज में विशिष्ट रूप से साइट्राबाइन और एंथ्रासाइक्लिन जैसी दवाओं का संयोजन, आमतौर पर डॉनोरूबिसिन शामिल होती है। कैंसर के शुरूआती इलाज के दौरान इटॉप्साइड, थायोगुएनिन या जेमटुजुमाब ओजोगैमिकिन भी दिया जा सकता है।
इस चरण का लक्ष्य उन सभी शेष बची कैंसर कोशिकाओं को नष्ट करना है जो आगे विकसित होना शुरू हो सकती हैं और खून के कैंसर के रोग के वापस आने का कारण बन सकती हैं। कैंसर केंद्र ऐसी जांचें कर सकते हैं जो 1,000 सामान्य कोशिकाओं में से एक एएमएल कोशिका का पता लगा सकते हैं। जिन बच्चों में इंडक्शन चरण को पूरा करने के बाद 1,000 में एक से अधिक कोशिकाएं होती हैं, उनमें रोग के वापस आने का सबसे अधिक खतरा होता है।
यह कन्सॉलिडेशन चरण रोगी के कैंसर-मुक्त होने के बाद शुरू होता है। इसमें कीमोथेरेपी के 2-4 चक्र शामिल होते हैं और यह 4 से 6 महीने तक चलता है। इस तरह की चिकित्सा में नॉन-क्रॉस-प्रतिरोधी दवाओं और साधारणतः उच्च-खुराक साइट्राबाइन के समावेशन के साथ-साथ इंडक्शन में उपयोग की जाने वाली कुछ दवाएं भी शामिल होती हैं।
हेमाटोपोईएटिक कोशिका प्रत्यारोपण (जिसे बोन मैरो ट्रांसप्लांट या स्टेम सेल ट्रांस्पलांट के रूप में भी जाना जाता है) की सलाह उन बच्चों के लिए दी जा सकती है जिनमें रोग के वापस आने का खतरा अधिक है या जिनके एएमएल पर इलाज का असर नहीं हो रहा है। चिकित्सक यह तय करने के लिए कि रोगी को बोन मैरो ट्रांसप्लांट की आवश्यकता है या नहीं, कभी-कभी यह देखते हैं कि इंडक्शन कीमोथेरेपी ने रोगी पर कितनी अच्छी तरह काम किया है।
एएमएल रोगियों में एलोजेनिक प्रत्यारोपण किया जा सकता है।
एलोजेनिक बोन मैरो ट्रांसप्लांट में, बच्चों को एक स्वस्थ डोनर से रक्त कोशिका-उत्पादन करने वाली कोशिकाएं दी जा सकती हैं। प्रत्यारोपण का पात्र होने के लिए रोगियों के पास एक उपयुक्त डोनर होना आवश्यक है। डोनर कोशिकाओं को प्राप्त करने से पहले, रोगी में कीमोथेरेपी के द्वारा और कई बार रेडिएशन के द्वारा उनकी बोन मैरो (हड्डी के अंदर जहां खून बनता है) में मौजूद रक्त कोशिकाओं को नष्ट कर दिया जाता है। रोगी को निषेचन प्रक्रिया के माध्यम से रक्त और मैरो कोशिकाएं दी जाती हैं। यदि यह प्रक्रिया सफल रहती है, तो शरीर में ये नई डोनर कोशिकाएं आगे विकसित होंगी और रोगी की रक्त और मैरो कोशिकाओं की जगह ले लेंगी। परिणामस्वरूप, रोगी की बोन मैरो (हड्डी के अंदर जहां खून बनता है) को स्वस्थ रक्त कोशिकाएं बनाना शुरू कर देना चाहिए।
बचपन में होने वाले एएमएल के लिए पांच साल की जीवित रहने की दर लगभग 70 प्रतिशत है।
एएमएल से पीड़ित लगभग 90 प्रतिशत बच्चों में आरंभिक इलाज के बाद उनके खून में कोई कैंसर कोशिका नहीं होती। एएमएल से पीड़ित लगभग 30 प्रतिशत बच्चों में रोग वापस आ जाता है या उनमें ऐसी बीमारी हो जाती है जो इलाज के प्रति प्रतिरोधक होती है (जिस पर प्रभाव न पड़े)।
कुछ एएलएल रोगियों पर देर से प्रभाव पड़ सकता है। देरी से दिखाई देने वाला प्रभाव एक स्वास्थ्य-संबंधी समस्या है जो इलाज समाप्त होने के कई महीनों या वर्षों बाद दिखाई देता है।
कैंसर इलाज के बाद, उनकी उपचार केंद्र देखभाल टीम और/या समुदाय के प्राथमिक देखभाल चिकित्सक को, कैंसर रोगियों की निगरानी रखनी चाहिए। देर से होने वाले प्रभावों का अक्सर इलाज किया जा सकता है या कुछ स्थितियों में, रोका जा सकता है।
विभिन्न इलाज के अलग-अलग देर के प्रभाव हो सकते हैं। सभी रोगियों पर देर से प्रभाव नहीं पड़ेगा। जिन रोगियों का एक ही इलाज हुआ है, उनपर भी अलग-अलग देर से प्रभाव पड़ सकते हैं।
एएमएल रोगियों के लिए खतरा हो सकता है:
हेमेटोपोएटिक सेल प्रत्यारोपण से गुजरने वाले रोगियों को, देर से होने वाले कुछ के प्रभाव से जोखिम हो सकता है।
एएमएल के इलाज के लिए शोधकर्ता नई दवाओं का परीक्षण कर रहे हैं। इनमें शामिल है:
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समीक्षा की गई: जून 2020