आनुवंशिक जाँच किसी व्यक्ति के वंशाणु में होनेवाले बदलाव और अंतर का पता लगाता है। सभी आनुवंशिक बदलाव हानिकारक नहीं होते हैं। कुछ लाभकारी, निष्पक्ष और स्वास्थ्य पर अनिश्चित प्रभाव वाले भी हो सकते हैं। ऐसे आनुवंशिक बदलाव, जिनके कारण स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव की संभावना होती है, उत्परिवर्तन कहलाते हैं।
कुछ उत्परिवर्तन विकार बन जाते हैं, जिसका मतलब है कि किसी तरह के कैंसर होने की संभावना सामान्य की तुलना में कहीं अधिक हो जाती है। ऐसे उत्परिवर्तन की पहचान कर ली गई है, जो कई तरह के ज्ञात आनुवंशिक कैंसर का कारण बनते हैं। परीक्षण इस बात की पुष्टि कर सकता है कि कोई स्थिति वंशानुगत स्थिति का कारण है या नहीं। आनुवंशिक जाँच यह भी निर्धारित करता है कि पारिवारिक सदस्यों में बीमारी के किसी लक्षण के बगैर भी वह उत्परिवर्तन वंशानुगत है या नहीं।
कैरियोटाइप गुणसूत्र की तस्वीर है — यह धागे जैसी एक संरचना है, जो वंशाणुओं को नियंत्रित करती है।
यह दिखा सकता है:
फिश परीक्षण गुणसूत्र के विशिष्ट क्षेत्रों का पता लगाने के लिए फ्लोरोसेंट जांच का उपयोग करता है।
यह गुणसूत्र के 1 या एक से अधिक ऐसे क्षेत्रों को दिखा सकता है, जो लापता हैं, अतिरिक्त हैं या सामान्य क्रम से भिन्न हैं। कैरियोटाइप (गुणसूत्रों का नक्शा) में दिखने के लिए ये बदलाव बहुत छोटे हैं।
फिश परीक्षण गुणसूत्र में खास तरह के बदलाव का पता लगाता है, जो फ्लोरोसेंट जांच द्वारा निर्धारित होता है। यह तमाम गुणसूत्र का परीक्षण नहीं करता।
यह परीक्षण सभी गुणसूत्र में लापता या अतिरिक्त हिस्सों का पता लगाता है।
यह बहुत ही छोटे लापता या अतिरिक्त गुणसूत्र को दिखा सकता है, जिसके कैरियोटाइप या फिश परीक्षण में चूक जाने का अंदेशा हो सकता हैं।
यह ऐसे गुणसूत्र के हिस्सों को नहीं दिखाता है, जो सामान्य क्रम से भिन्न होते हैं।
डिलीटेशन/डुप्लीकेशन परीक्षण किसी खास वंशाणु में लापता या अतिरिक्त हिस्सों का पता लगाता है।
यह डीएनए के लापता या अतिरिक्त हिस्सों का पता लगा सकता है, आमतौर पर जो कैरियोटाइप, फिश या एसएनपी गुणसूत्र माइक्रोऐेरे परीक्षण में शायद ही दिखें।
हरेक व्यक्ति को 1 वंशाणु की प्रति अपनी मां और 1 अपने पिता से वंशानुगत रूप से प्राप्त होते हैं। आमतौर पर, ये वंशाणु दोनों तरह से काम करते हैं।
ये किस तरह की कोशिका में है, उसके आधार पर इन्हें “चालू” या “बंद” किया जाता है। लेकिन किसी वंशाणु में केवल 1 प्रति चालू या बंद होती है। यह “मिथाइलेशन” नामक प्रक्रिया के दौरान होता है। मिथाइलेशन परीक्षण यह देखने के लिए किया जाता है कि किसी ख़ास वंशाणु या गुणसूत्र में यह प्रक्रिया सही तौर पर काम कर रही है या नहीं।
मिथाइलेशन परीक्षण किसी ख़ास गुणसूत्र के क्षेत्र या वंशाणु के मिथाइलेशन पैटर्न में बदलाव का पता लगा सकता है।
आमतौर पर, व्यक्ति को गुणसूत्र की 1 प्रति अपनी मां और 1 प्रति अपने पिता से वंशानुगत रूप से प्राप्त होता है। लेकिन किसी व्यक्ति में तमाम गुणसूत्र की 2 प्रतियां होती हैं या दो प्रतियां किसी एक गुणसूत्र के ख़ास हिस्से से प्राप्त होती हैं, जो माता-पिता में से किसी 1 से प्राप्त होती हैं। यह यूनिपैरेंटल डिसॉमी या यूपीडी कहलाती है।
किसी ख़ास गुणसूत्र या जिस गुणसूत्र क्षेत्र की जांच की गई है, यह परीक्षण उसमें यूनिपैरेंटल डिसॉमी का पता लगाता है।
डीएनए सिक्वेंसिंग परीक्षण में अक्षरों (ए, टी, सी, जी) के लिए कोड की व्याख्या करता है, जो वंशाणुओं को बनाते हैं। यह सामान्य कोड से किसी बदलाव का पता लगाता है।
डीएनए विश्लेषण 1 वंशाणु या एकाधिक वंशाणु में किया जा सकता है।
जीनोमिक सिक्वेंसिंग तब होती है, जब किसी व्यक्ति के सभी वंशाणुओं का एक ही बार में परीक्षण किया जाता है।
यह परीक्षण यह दिखा सकता है कि डीएनए के अक्षरों के क्रम में बदलाव है या नहीं, जो 1 या एकाधिक वंशाणुओं को बनाता है।
सिक्वेंसिंग यह भी दिखा सकता है कि डीएनए के 1 या कुछ अक्षर लापता हैं या उसमें अतिरिक्त अक्षर हैं।
ज़्यादातर, यह परीक्षण डीएनए के बड़े क्षेत्रों को नहीं दिखाता है, जो लापता हैं, अतिरिक्त हैं या सामान्य क्रम से भिन्न हैं।
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समीक्षा की गई: जून 2018