जब चिकित्सक को बचपन के कैंसर के किसी रोगी में किसी संक्रमण का संदेह होता है, तो उसके लिए यह जानना आवश्यक होता है कि संक्रमण किस रोगाणु के कारण हो रहा है। संक्रमण के कारण का पता लगाकर चिकित्सक रोगी के लिए सही इलाज तय कर सकता है।
रोगियों के लिए संक्रमण जानलेवा हो सकता है। कुछ कैंसरों के इलाज के दौरान शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को गहरा नुकसान पहुंचता है और इस प्रकार के इलाज से गुजरे रोगियों में गंभीर संक्रमण होने की ज्यादा संभावनाएं होती हैं।
संक्रमण के कारण का पता लगाने के लिए कुछ जांच और प्रक्रियाओं का सहारा लेना पड़ सकता है। इनका प्रकार इस तथ्य पर निर्भर करता है कि रोगी किस प्रकार के संकेत और लक्षण दिखा रहा है तथा चिकित्सक को किस प्रकार के संक्रमण का संदेह है।
देखभाल करने वाली टीम के संक्रमण का कारण पता लगाने के लिए जांच और प्रक्रियाएं शुरू करने से पहले ही संक्रमण की नाजुक स्थिति को देख कर चिकित्सक फ़ौरन ब्रॉड-स्पेक्ट्रम एंटीमाइक्रोबियल इलाज शुरू कर देते हैं जो ज्यादातर रोगाणुओं को मारने या उनकी वृद्धि रोकने के काबिल होता है।
आमतौर पर, स्वास्थ्य सेवा प्रदाता चिकित्सकीय इतिहास (मेडिकल हिस्ट्री) और शारीरिक जांच से शुरुआत करते हैं। वे उन संकेत और लक्षण की तलाश करते हैं जो उन्हें संक्रमण के स्थान के बारे में जानकारी दें। ये लक्षण निम्न हो सकते हैं, हालांकि ये इन्हीं तक सीमित नहीं हैं:
जांच और परीक्षण के बाद, प्रदाता अधिक जानकारी लेने के लिए कुछ जाँच करवा सकता है।
खून में जीवाणु का पता लगाना संक्रमण का पता लगाने के लिए की जाने वाली सबसे आम जाँच है। इस प्रक्रिया में रोगी के शरीर से खून निकाला जाता है और इस खून के नमूने को प्रयोगशाला में भेज दिया जाता है।
रोगी के संकेत और लक्षणों के आधार पर और जाँच करनी पड़ सकती हैं।
अगर मूत्रमार्ग के संक्रमण का संदेह है तो देखभाल करने वाली टीम रोगी के पेशाब लेकर पेशाब का कल्चर और/या पेशाब की जाँच करेंगे।
अगर रोगी को खांसी हो रही है या नाक बह रही है तो चिकित्सक नाक या गले में से (नासोफरीनक्स) वॉश या स्वैब कर सकता है। यह गले के बिल्कुल पीछे स्थान से कोशिकाओं और स्त्रावणों के नमूने जमा करने के लिए किया जाता है। इस स्थान को नासोफरीनक्स कहा जाता है।
कुछ मामलों में चिकित्सक, संक्रमण के स्त्रोत का पता लगाने के लिए छाती का एक्स-रे, सीटी स्कैन या ब्रोंकोस्कोपी जैसे कुछ और जांचे करवा सकते हैं।
अगर चिकित्सक को त्वचा के संक्रमण का कोई लक्षण दिखाई देता है, तो वह संक्रमण के कारण का पता लगाने के लिए प्रभावित त्वचा पर स्किन बायोप्सी कर सकता है।
अगर घाव में संक्रमण का कोई लक्षण दिखाई देता है, तो चिकित्सक इस घाव से तरल पदार्थ जमा करता है और इसे जाँच के लिए प्रयोगशाला में भेज देता है।
घाव के जीवाणुओं की जाँच (कल्चर) करने के लिए, देखभाल करने वाली टीम का एक सदस्य सबसे पहले घाव को साफ़ करता है, फिर एक पट्टी का उपयोग करके घाव से तरल पदार्थ जमा करता है और प्रयोगशाला में भेज देता है।
अगर रोगी दस्त या इससे संबंधित कोई लक्षण दिखा रहा है, तो जीवाणुओं की जाँच (कल्चर) या दूसरे प्रकार की जाँचो के लिए मल का नमूना लिया जा सकता है।
एक साफ़ पात्र में मल का ताजा नमूना लिया जाना चाहिए और यह पात्र दूसरे पदार्थों जैसे कि मूत्र, पानी, या फिर शौच या डायपर के संपर्क में आने से दूषित नहीं हुआ होना चाहिए। नमूना लिए जाने के बाद उसे प्रयोगशाला में भेज दिया जाता है। मलाशय के स्वैब के माध्यम से भी मल का नमूना एकत्र किया जा सकता है।
संक्रमण के लक्षणों को देखने के लिए चिकित्सक पेट या श्रोणि (पेल्विस) का सीटी स्कैन करवा सकता है।
अगर चिकित्सकों को सीएनएस के संक्रमण का संदेह होता है, तो वह लंबर पंक्चर जाँच या दिमाग की एमआरआई जैसी जाँचे करवाने के लिए कह सकते हैं।
काफी समय सारे के सारे टेस्टों के परिणाम नकारात्मक (निगेटिव) आ सकते हैं। इसका अर्थ यह है कि संक्रमण पैदा करने वाले रोगाणु की पहचान नहीं हो पा रही है। अगर फिर भी संक्रमण का संदेह है, तो चिकित्सक सोच कर उस तरीके का एंटीमाइक्रोबियल इलाज जारी रख सकते हैं जो संक्रमण के सभी संभावित कारणों के खिलाफ प्रभावी हो।
अगर वह रोगाणु जो संक्रमण करता है जीवाणुओं की जाँच (कल्चर) के माध्यम में बढ़ता है, तो उसके लिए एक संवेदनशीलता जाँच की जा सकती है। ये टेस्ट निर्धारित करते हैं कि रोगाणु विभिन्न जीवाणु नाशक दवाई के प्रति संवेदी हैं या प्रतिरोधी। देखभाल करने वाली टोली इन जाँचो के परिणामों का उपयोग करके रोगी के लिए सबसे उपयुक्त इलाज का निर्धारण करेगी।
जाँच के परिणामों को पाने में, जाँच के प्रकार के आधार पर, 24 घंटे या 2-3 दिन (या अधिक) का समय लग सकता है।
देखभाल करने वाली टीम इन जाँचो के परिणामों को रोगी के परिवार को बताएंगी और उनके साथ इलाज के विभिन्न विकल्पों पर चर्चा करेंगी।