मुख्य विषयवस्तु में जाएं

ग्राफ्ट वर्सेज होस्ट डिसीज़ (जीवीएचडी)

ग्राफ्ट वर्सेज होस्ट डिसीज़ क्या है?

ग्राफ्ट वर्सेज होस्ट डिसीज़ (जीवीएचडी) गंभीर होता है, कभी-कभी हेमाटोपोइटिक सेल ट्रांसप्लांट (आमतौर पर जिसे बोन मैरो ट्रांसप्लांट या स्टेम सेल ट्रांसप्लांट के रूप में जाना जाता है) जानलेवा समस्या है।

एलोजेनिक ट्रांसप्लांट के बाद जीवीएचडी हो सकता है। 2 प्रकार के ट्रांस्प्लांट्स होते हैं, जो हेमाटोपोइटिक (निर्माण कोशिकाओं) सेल - एलोजेनिक के स्रोत पर आधारित हैं-एलोजेनिक और ऑटोलोगस। एलोजेनिक ट्रांसप्लांट होता है, जब कोशिकाएं दूसरे व्यक्ति से आती हैं। ऑटोलॉगस ट्रांसप्लांट होता है, जब कोशिकाएं मरीज से आती हैं।

जब प्रतिरोधक कोशिकाएं दानकर्ता (ग्राफ्ट) मरीज की साधारण कोशिकाओं और ऊतक (होस्ट) बाहरी के तौर पर को पहचानता है और उन पर हमला करता है, तब जीवीएचडी होता है। प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया के लक्षण दानकर्ता कोशिकाओं से शरीर के किस भाग को नुकसान पहुंचाया गया है, उस पर निर्भर करता है।

जीवीएचडी अंदाजन 20-50% मरीजों में ट्रांसप्लांट के बाद होता है। यह ट्रांसप्लांट के बाद किसी भी समय हो सकता है। एक बार हो जाने के बाद, जीवीएचडी का इलाज करना मुश्किल होता है और गंभीर मामलों में यह जानलेवा हो सकता है।

जीवीएचडी के 2 प्रकार हैं:

  • गंभीर
  • क्रॉनिक (पुराना)

गंभीर जीवीएचडी

गंभीर जीवीएचडी को आमतौर पर माना जाता है कि यह ट्रांसप्लांट के बाद पहले 100 दिनों के दौरान होता है। लेकिन यह किसी भी वक्त हो सकता है। संकेत और लक्षण में विशिष्ट रूप से त्वचा, जठरांत्रीय (जीआई) ट्रैक्ट और जिगर शामिल हैं। दानकर्ता प्रतिरक्षा कोशिकाओं में प्राथमिक रूप से टी कोशिकाएं होती हैं।

गंभीर जीवीएचडी के संकेत और लक्षण

संकेत और लक्षण हल्के से गंभीर हो सकते हैं। इनमें ये शामिल हो सकते हैं:

त्वचा

  • फुंसी
  • लाल होना
  • फफोले
  • छाले

जीआई ट्रैक्ट (जठरांत्र पथ)

  • जी मिचलाना
  • उल्टी होना
  • भूख न लगना
  • पानी जैसे दस्त होना या उसमें खून आना
  • पेट में दर्द
  • कम एल्ब्यूमिन स्तर
  • पीलिया

जिगर

  • बढ़ा हुआ बिलीरुबिन स्तर
  • जिगर संबंधी समस्याएं

क्रॉनिक (पुराना) जीवीएचडी

क्रॉनिक (पुराना) जीवीएचडी आम तौर पर ऐसी बीमारी है, जो ट्रांसप्लांट के 100 दिन बाद होती है। लेकिन यह पहले भी हो सकता है। यह एक ऑटोइम्यून रोग (स्वप्रतिरक्षित रोग) के समान है और कई अंगो को या अंग प्रणाली को प्रभावित कर सकता है। दानकर्ता प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया में प्राथमिक रूप से टी सेल और बी सेल शामिल हैं।

क्रॉनिक (पुराना) जीवीएचडी के संकेत और लक्षण

संकेत और लक्षण हल्के से गंभीर हो सकते हैं। इनमें ये शामिल हो सकते हैं:

  • त्वचा लक्षण — चकत्ते और खुजली, शल्की त्वचा, त्वचा पर खोये धब्बे, त्वचा का काला होना, त्वचा की कठोर बनावट, जख्म के निशान जो आसपास के जोड़ों, जैसे कि उंगलियों को सीमित कर देता है।
  • नाख़ून टूटना या गिरना
  • बाल झड़ना
  • जोड़ों में अकड़न
  • मुंह और भोजन-नली में सूखापन और घाव
  • सूखी आंखें और आंखों में लालिमा
  • महिलाओं में - योनि और अन्य सतहों का सूखापन
  • पुरुष में – कद छोटा होना, लिंग में बदलाव
  • खांसी, सांसों का कम होना, साँस की घरघराहट
  • फेफड़ों का सूखना और घाव
  • जिगर की चोट या जिगर फ़ेल होना
  • पीलिया

जोखिम कारक

जीवीएचडी के जोखिम कारकों में शामिल हैं

  • दानकर्ता और मरीज के बीच “मिसमैच” का अंश (एचएलए-मैच)
  • दानकर्ता और प्राप्तकर्ता की उम्र
  • हेमाटोपोइटिक (रक्त-निर्माण) कोशिकाओं का स्रोत
  • अनुकूल नियम की तीव्रता

रोकथाम

जीवीएचडी को रोकने में मदद के लिए देखभाल टीम कदम उठाएगी।

  • दानकर्ता का चुनाव — देखभाल टीम सबसे करीबी एचएलए-मैच वाला मौजूद दानकर्ता चुनेगी।
  • दानकर्ता कोशिका में बदलाव करना — दानकर्ता कोशिकाओं (ग्राफ्ट) को, दानकर्ता प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को रोकने के लिए जो जीवीएचडी का कारण है, टी कोशिकाओं की संख्या को कम करने के लिए बदलाव किया जा सकता है। मरीज को कोशिकाएं देने के पहले या कुछ दवाएं जो कोशिकाएं देने के बाद दी जाती हैं, कोशिका संसाधन सुविधा में बदलाव किया जा सकता है।
  • प्रतिरक्षा कम करने वाली दवांए — मरीजों को शायद दानकर्ता प्रतिरक्षा कोशिका गतिविधि को कम करने लिए दवाएं मिले। आमतौर पर उपयोग में लाई गई दवाओं में साइक्लोस्पोरिन, , टैक्रोलिमस, सिरोलिमस, मेथोट्रिक्सेट, मैकफेनॉलाटे मॉफेटिल, साइक्लोफॉस्फोमाइड, एंटी-थायमोसाइट ग्लोब्युलिन (एटीजी) और अलेमटुजुमब शामिल हैं।

मरीज और परिवार क्या कर सकते हैं

मरीजों और परिवारों को जीवीएचडी को रोकने में मदद करने के लिए सक्रिय भूमिका निभाने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है:

  • दवाओं के निर्देशों का बताए गए अनुसार पालन करें। यह महत्वपूर्ण है कि मरीज देखभाल टीम द्वारा निर्धारित दवाओं को ठीक उसी तरह से लें जैसा बताया गया हो।
  • शुरुआती संकेतों और लक्षणों पर ध्यान दें। देखभाल टीम को किसी भी बदलाव के बारे में जानकारी दें। ये बदलाव जीवीएचडी के बारे में संकेत दे सकते हैं। सामान्य तौर पर, जीवीएचडी का प्रारंभिक स्तरों में इलाज किया जा सकता है। समय रहते पता चलने पर इसका मरीज के दीर्घकालीन स्वास्थ्य पर सकारात्मक असर पड़ता है।
  • त्वचा को धूप से सुरक्षित रखें। सूरज की रोशनी जीवीएचडी को बढ़ा सकती है या और बिगाड़ सकती है। जब भी मरीज बाहर जाए, उन्हें लंबी टोपी, लंबी बाँह के कपड़े, लंबे पैंट पहनकर और एसपीएफ 30 या उससे अधिक वाला सनस्क्रीन लगाकर जाने के लिए प्रोत्साहित करें। सबसे बढ़िया सुरक्षा है धूप में बाहर न निकलना।

रोग की पहचान करना और निगरानी

जीवीएचडी के संकेतों के लिए मरीजों को बहुत बारीकी से मॉनिटर किया जाएगा। इस प्रक्रिया में शारीरिक जांच, चिकित्सकीय इतिहास, लैब परीक्षण और इमेजिंग जांच शामिल हो सकती हैं।

आगे की जांच लक्षणों के प्रकार पर निर्भर करती है। जांच में बायोप्सी (टुकड़ा निकालने), त्वचा के जरिये ऊतक नमूना निकालकर, ऊपरी ऐंडोस्कोपी और/या कोलोनोस्कोपी, लैब जांच और इमेजिंग जांच शामिल हो सकते हैं।

इलाज

इलाज का उद्देश्य अतिसक्रिय दानकर्ता प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को रोकने और प्रतिरक्षा प्रणाली को साधारण होस्ट ऊतक पर आक्रमण न करने से बचने पर है। मरीजों के लक्षणों के अनुसार उनके इलाज में बदलाव होगा।

दवाएं

कॉर्टिकोस्टेरॉयड जैसे कि मिथाइलप्रीडनीसलोन, डेक्सामिथेसोन और प्रेडनिसोन जीवीएचडी के इलाज के मुख्य आधार हैं। दवाइयों को शिरा (नसों), मुंह, क्रीम या लेप, आँखों का ड्रॉप या ओरल रिंज से दिया जा सकता है।

अन्य दवाओं में प्रतिरक्षा कम करने बाली दवाएं (जो ऊपर निवारण अनुभाग में दी हुई हैं), प्रतिरक्षा बढ़ाने का उपचार (इम्यूनोथेरेपी) और लक्षित इलाज शामिल हो सकते हैं।

प्रकाश उपचार

संकीर्ण बैंड वाले अल्ट्रावायोलेट (यूवी) बी फोटोथेरपी और बाह्य फोटोफेरिस (ईसीपी) 2 दो ऐसी थेरेपी हैं जो जीवीएचडी के इलाज के लिए प्रकाश का उपयोग करते हैं। 

यूवी फोटोथेरपी जीवीएचडी से होने वाली त्वचा की समस्यायों को ठीक करने के लिए यूवीबी रेडिएशन इस्तेमाल करता है। 

ईसीपी में खून लेना और इसे लाल रक्त कोशिका, सफेद रक्त कोशिका और प्लेटलेट्स शामिल हैं। सफेद रक्त कोशिकाओं का इलाज दवाओं से और अल्ट्रावायोलेट (यूवी) प्रकाश के सामने रखने से होता है। उसके बाद ये कोशिकाएं, अन्य रक्त कोशिकाओं के साथ, शरीर में वापस डाली जाती हैं। इलाज की हुई कोशिकाएं जीवीएचडी से लड़ने के लिए प्रतिरक्षा प्रणाली को प्रोत्साहित कर सकती हैं।

सूचना: एक आम गलत धारणा है कि ट्रांसप्लांट के सफल होने के लिए जीवीएचडी ज़रूरी है। यह सच नहीं है। मरीज का ट्रांसप्लांट सफल होने के लिए जीवीएचडी विकसित होने की ज़रुरत नहीं होती है।


समीक्षा की गई: जनवरी 2019